संत श्री दुलाराम जी कुलरिया || Sant Shri Dularam Ji Kularia||

 संत श्री दुलाराम जी कुलरिया जिन्होंने गौ सेवा और समाज सेवा में अपना पूरा जीवन लगा दिया, जिनकी समाज सेवा की प्रेरणा आज भी गांवों में मौजूद है। संतजी ने अपने सरलता से लोगों के दिलों में अमिट छाप छोड़ी दी, आज भले ही संतजी इस दुनिया में नहीं है, लेकिन वे लोगों के दिलों में राज करते है। गौ सेवक संत श्री दुलाराम जी कुलरिया का सरल और सादगीपूर्ण जीवन लोगों के लिएप्रेरणादायक बना। संतजी हमेशा सादा जीवन और उच्च विचारों पर जोर देते, सादगी और सरलता उनके पहनावे में झलकती थी। सफेद चोला और धोती का पहनावा ही उनकी पहचाना था। संतजी में आत्मविश्वास इतना था कि कठिन से कठिन काम करते थे लेकिन कठिन काम के आगे भी कभी हार नहीं मानी। आज भले ही संतजी इस दुनिया में नहीं है लेकिन करोड़ों लोगों की दिलों में संतजी जिंदा है।



बीकानेर के नोखा तहसील के मूलवास सिलवा में वटवृक्ष से आज भी प्रेरणा लेते है। गौ सेवक संत श्री दुलाराम जी कुलरिया का जन्म 25 मई 1935 में मूलवास गांव में हुआ। संतजी का शुरू से ही आध्यात्मिक ज्ञान की ओर झुकाव रहा। संतजी कम उम्र में ही गायों की सेवा में लग गये,साथ ही धीरे-धीरे समाज सेवा में आगे बढ़ते गए। संतश्री दुलाराम कुलरिया का 18 वर्ष की उम्र में नोखा मंडी निवासी गोमदराम की पुत्री रामप्यारी जी के साथ विवाह हुआ। संत श्री दुलाराम जी की 3 पुत्र है जिसमें बड़े पुत्र भंवर, छोटे पुत्र नरसी और सबसे छोटे पुत्र पूनम, जिन्होंने संतजी के मार्गदर्शन को अपनाते हुए मुंबई में बड़ा कारोबार फैलाया। आज संतजी के मार्गदर्शन से नरसी एसोसिएट. नरसी ग्रुप इंटीरियर सबसे बड़ा ग्रुप बनकर उभरा है। संतजी की पुण्यतिथि पर हर साल 23 अगस्त को भव्य कार्यक्रम आयोजित होता है, जिसमें हजारों लोगों की भीड़ उमड़ती है, संतजी की समाज सेवा और गो सेवा के कार्य को संतजी के पुत्र बखूबी आगे बढ़ा रहे हैं। गरीब लोगों की सेवा के लिए पिताजी के मार्गदर्शन को पुत्र अभी तक नहीं भूले। संतजी के मार्गदर्शन में ही गरीबों की मदद के लिए पुत्र भी मदद के लिये आगे रहते है। गरीबों की मदद के लिए हमेशा तत्पर आज भी गौशालाओं में आर्थिक मदद संतजी के पुत्र बखूबी निभा रहे है।


संतजी के पास पुत्री के विवाह के लिए, अस्पताल में इलाज के लिए, स्कूल में पढ़ाई के लिए, मदद के लिए कोई भी गरीब परिवार पहुंचा, उसे संतजी ने कभी मना नहीं किया। गरीब परिवारों की मदद करना ही संतजी का लक्ष्य बन गया था। संतजी आलस्य के घोर विरोधी रहे, संतजी कहते थे कि, "आलस्य के कारण साहस समाप्त हो जाता है, हिम्मत मंद पड़ जाती है कर्म और धर्म की महानता पार है, श्रम करने से कोई रोग नहीं होता।" इतनी सब खूबियों के चलते संत श्री दुलाराम के जीवन को एक पुस्तक में पिरोया गया जिसका नाम दिया गया 'वटवृक्ष'।  संत श्री दुलाराम जी को गौ सेवा और समाज सेवा के लिए कई समान सम्मान मिले। वर्ष 2006 में बाड़मेर जिले में आई अतिवृष्टि के दौरान भी संत जी ने आर्थिक सहायता के साथ ही बाड़मेर जिले के गांव-गांव पहुंचकर अतिवृष्टि से पीड़ित लोगों की मदद की। 


संतजी का सम्मान  :

2016 जयपुर में राज्य स्तरीय गणतंत्र दिवस समारोह पर राज्यपाल से 50,000 नकद पुरस्कार से सम्मानित।

2004 में बीकानेर जिला प्रशासन द्वारा स्वतंत्रता दिवस पर समाज सेवा के लिए सम्मानित।

30 सितंबर 2004 नई दिल्ली में नेशनल सिटीजन गिल्ड द्वारा भारत के पूर्व मुख्य चुनाव आयुक्त जीवीजी कृष्णमूर्ति द्वारा राष्ट्रीय रत्न अवार्ड 2003 से नवाजा गया

29 जून 2008 जयपुर में श्री विश्वकर्मा सुथार जांगिड़ समाज महासम्मेलन में विश्वकर्मा समाज रत्न सम्मान से सम्मानित।

हरियाणा के सिरसा में विश्वकर्मा समाज गौरव से अलंकृत किया गया।

भरतपुर के नगर में 27 अप्रैल 2009 को संत जी के सानिध्य में सामूहिक विवाह सम्मेलन आयोजित करवाया, जिसमें अखिल भारतीय जांगिड़ ब्राह्मण महासभा जिला सभा भरतपुर द्वारा लोहागढ़ रत्न अवार्ड से नवाजा गया।

22 फरवरी 2006 को राजस्थान पत्रिका की ओर से आयोजित सम्मान समारोह में जिला कलेक्टर द्वारा सम्मानित किया गया।

21 फरवरी 2005 को नोखा में विश्वकर्मा जयंती समारोह में विश्वकर्मा समाज रत्न अवार्ड से नवाजा गया।

27 जून 2005 जेवियर अवार्ड से सम्मानित किया गया।

2009 में बंधड़ा में गणतंत्र दिवस समारोह में भामाशाह अलंकरण से सम्मानित किया गया।


संत श्री दुलाराम जी कुलरिया गायों से अत्यधिक प्रेम करते थे। स्वयं हर रोज अपने हाथों से गाय को नहलाते, गाय की सेवा करते, संतजी हमेशा गौशालाओं में सबसे अधिक दान करते। संतजी कहते थे कि, "गाय इतनी महत्वपूर्ण है कि इसकी तुलना करना असंभव है भारत में वैदिक काल से ही गाय को माता के समान माना जाता है।" पुराणों में कहा गया है कि, "गौ माता में सभी देवी देवताओं का निवास है। भारत की गौरवमयी परंपरा में गाय का सबसे ऊंचा स्थान है।" संतजी ने समाज में व्याप्त कुरीतियों नशाखोरी के विरुद्ध जन चेतना जागृत करने में भी हमेशा आगे रहे। समाज में व्याप्त कुरीतियों को मिटाने के लिए संतजी ने लोगों में जागरूकता का काम किया, संतजी का राजनीति से कभी लगाव नहीं रहा लेकिन लोगों से प्रेम के चलते ग्रामीणों के आग्रह पर चरकड़ा ग्राम पंचायत में पंच और उपसरपंच बने लेकिन राजनीति में लगाव नहीं रखा। संतजी की पहली प्राथमिकता समाज सेवा करना रहा।


संत श्री दुलाराम जी कुलरिया 2010 में बीकासर गांव के श्री खूमगिरी जी बाबा के शिष्य बने, श्रीमद्भागवत गीता, रामायण व धार्मिक ग्रंथों का ज्ञान साधु-संतों की कृपा से प्राप्त हुआ। तपस्वी संत श्री मनीनाथ जी महाराज, तपस्वी श्री विवेक नाथ जी, श्री बालाजी के संत श्री नवलाराम जी, दावा के संत श्री कृष्णदास जी और श्री जोगाराम जी जाखणिया गांव के संत श्री पहाड़ जी के सानिध्य में आध्यात्मिक ज्ञान की प्राप्ति की। जिसके बाद ग्रामीणों में आध्यात्मिक ज्ञान को पहुंचाने को लेकर संतजी ने काम किया। संतजी की वाणी को सुनने के लिए दूर-दूर से लोग आते थे। संत श्री दुलाराम जी कुलरिया को शत-शत नमन।

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